हे सावित्रे,
हे पति परायणे,
त्याग, तपस्या, की मूर्ति,
हे देवि, हे सती, हे सधवा,
युगों-युगों से बलिदान की
तुम्हीं हो परिभाषा।
हे आदर्श पत्नी,
अनगिनत पीढ़ियों के लिए मिसाल,
नर-मुनि-देवता भी करते हैं जिसे
शत-शत प्रणाम!
हर माँ रखना चाहे, बेटी का नाम,
तुम्हारा, क्योंकि,
मात्र तुम्हारा नाम रखने भर से,
सत गुणों का स्थानान्तरण तय है।
हे मुनि कन्या,
एक अरज़ मेरी भी सुनना,
किसी जनम में
बनकर सत्यवान, अपने गुणों को,
विस्तारित करना,
हर पुरुष तुम सा एकनिष्ठ,
पत्नी परायण, समर्पित
और भावुक हो जाए,
विनती मेरी इतनी सुनना,
फिर ना बलात्कार होगा,
ना ही चीर-हरण, और
ना ही बालिकायें आत्मदाह को,
मज़बूर होंगी।
एक बार पुरुष योनि में समाकर,
तुम्हें पुरुष का खोया गौरव
लौटाना होगा।
उनके सम्मान, उनके गुरुपद,
पर हमारा विश्वास जगाना होगा।
फिर एक बार तुम्हें आना होगा,
आना ही होगा।।
सुधा गोयल "नवीन "
16.5.15
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