हिन्दी तुझे प्रणाम!
हिन्दी को गंगा समझ
स्वीकृत अस्वीकृत
सब उड़ेल दिया
और इसने सब समेट लिया ..............
बहना गति है जीवन है
समृद्धि की परिकल्पना भी
रूढ़ियाँ अवरुद्ध करती हैं
परिवर्तन शाश्वत सत्य है......
माँ के आँचल सी उदार हिन्दी
समेट लेती है सहर्ष
संवर्धन और अंतर्राष्ट्रीयकरण
के नाम पर समस्त संक्रमण.........
लय, गति, छंद, मृदुलता,
सभ्यता, संस्कार, संस्कृति
अलंकरण हिन्दी के
अति सहज, सरल, रूपवती...........
मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरनेट
को भी समेटकर बही हिन्दी
बहेगी सदा अविरल, अखंड
सृजन की देवी शत्शत् प्रणाम।।
सुधा गोयल ’’नवीन‘‘
जमशेदपुर