माँ याद आती है
पेड़ों की शाख जब फूलों से ढक जाती है,
पीली-पीली चुनरिया से झांकती,
मुस्काती माँ ,
बहुत याद आती है …………
बैसाखी शामों में अकस्मात्
ठंडी बयार जब छू जाती है,
बुखार से तपते माथे पर माँ,
तेरी सरगमी अंगुलियाँ,
बहुत याद आती है …………
पलाश के धधकते फूलों से
जब मौसम गर्माता है,
चूल्हे पर फूली-फूली रोटियाँ
सेकती, दमकती माँ,
बहुत याद आती है …………
घुमड़ते बादलों संग जब झमाझम
बारिश का नर्तन होता है,
कुएं से पानी खींचती,
माँ तेरी चूड़ियों और पायल की झनकार
बहुत याद आती है …………
टेढ़े- मेढ़े, गलत रास्ते जब लुभावने वेश में
मुझे आकर्षित करते हैं ,
तेरी काली-कजरारी पर लाल आँखें,
मुझे सदमार्ग दिखाती हैं ,
तब सबसे ज्यादा बहुत बहुत ज्यादा,
माँ तेरी याद आती है
बहुत याद आती है …………
सुधा गोयल ‘’नवीन”