" फागुन "
सुधा गोयल "नवीन"
माघ बीता फागुन आया, लाया रंगों की बौछार, होली में........
फागुन की आहट से नाच उठे मोर,
फूला पलाश जब कामदेव ने, तीर चलाया होली में..........
गोरी ने आँख मारी.. पलट पलट आँख मारी,
भीग गए सांवरिया, मन हुआ बावरिया होली में..........
चढ़ी भांग की मस्ती, ढपली ढोल मंजीरा बाजे
झलका, छलका, इत- उत यौवन, होली में........
कजरारे नैनों की भाषा,
कुंदन बदन, की अभिलाषा,
है वह निपट गंवार अनाड़ी, जो न समझे होली में.......
कैरी टपकी, कोयल कूकी, टेसू दहका, भौंरा बहका,
कनकनी दूर हुई, पानी पर आया प्यार होली में.......
छ्र्रर्र्र पिचकारी बरसे, उड़े अबीर गुलाल के बादल,
विरह मिलन की घडी बन गई साजन आये होली में ….......
छोटा देवर बड़ा हठीला, लंहगा चोली सब करे गीला
मार खाए, गारी खाए, बड़ा सताए होली में........
और अंत में दो पंक्तियाँ इस देश के नाम …...........
जात पात, उंच नीच, धर्म कर्म का भेद भुला कर,
इन्द्रधनुषी पक्के रंगों से सब रंग जाएँ होली में........
माघ बीता फागुन आया, लाया रंगों की बौछार, होली में........
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