Thursday 7 November 2013

वार्तालाप अजन्मी बेटी से



माँ मेरी प्यारी माँ क्या तुमने मुझे पहचाना?
कोख से तेरी,  मैं तेरी बिटिया बोल रही हूँ,
दर्प से चमकता तेरा चेहरा टटोल रही हूँ,
तेरे आँचल की छाँव और नर्म गोदी के लिए,
दिवस, रात्रि, मास, पल-पल बेकल हो…।  
गिन रही हूँ ……

सबेरा गुनगुनाता और रात दिवाली मनाती थी,
खुशियाँ पंख पसारे मेरी किस्मत पर इतराती थी,
मिली थी मुझे खबर तुम्हारे आने की,
अपनी कोख की हलचल पर मैं मुस्काती थी.

पर मेरी बच्ची ………………

अनगिनत सपनों और अरमानों की झोली,
भिखारिन के आँचल सी हो गई तार-तार,
और सारी मिन्नतें भी हो गई बेकार,

उन्हें मनाने की हर कोशिश हो गई नाकाम,
जिन्होंने सुनाया तुम्हें कोख में ही
मार डालने का फ़रमान,

ये कैसी कशमकश में जी रही हूँ मैं,
हर घडी खून का घूँट पी रही हूँ मैं,

नहीं मारा तो मारी जाऊँगी इस घर में,
मार डाला तो जी न पाऊँगी इस घर में,
बेटा और सिर्फ बेटा जनने का आदेश है,
क्या यह मेरे वश में शेष है?

तेरी करुण पुकार और जीवन-दान की भीख,
मेरी कशमकश को देना चाहती है सीख,
प्राण न्यौछावर कर तुम्हें इस दुनिया में लाना है,
फिर मेरी बच्ची तुम्हें अपना रास्ता खुद बनाना है,
फिर मेरी बच्ची तुम्हें अपना रास्ता खुद बनाना है,

नहीं मालुम सफल होऊँगी या असफल,
धधकते शोलों पर चलना  है मुझे हर पल,
दिखाने के लिए तुम्हें तुम्हारा सुनहरा कल,
तेरी  एक झलक की चाह मुझे  दे रही है बल..

मैं रहूँ न रहूँ तुझे तेरा दायित्व निभाना होगा,
एक बार फिर से दुर्गा, काली, कात्यानी बनकर,
कोख-विनाशकों, हवस के दरिंदों, वहशी दानवों को,
धूल में मिलाकर पूजनीय कहलाना होगा.
अस्मिता बचाना होगा….
एक नया पाठ पढाना होगा…….
अपना रंग दिखाना होगा…….
मेरी बच्ची तुम्हें अपना रास्ता खुद बनाना होगा
अपना रास्ता खुद बनाना होगा ……

सुधा गोयल "नवीन"
9334040697



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Sudha Goel