Sunday 16 March 2014

बचपन की यादें

                   बचपन की यादें



कुछ मीठी कुछ कड़वी यादें, नहीं भूलती बचपन की यादें.


शाम -सबेरे छत पर जाना, मुक्त कंठ से गाना गाना
कोयल के स्वर से स्वर मिलाना, फिर खुद से र्मा जाना।


गुडि़या की शादी में, हल्दी-मेंहदी-ज्यौनार का न्यौता भिजवाना,
चूड़ी बिन्दी लँहगा औ’ चूनर का दहेज जुटाना,
और विदा की घड़ी की बाल्टी भर-भर आँसू बहाना।


कड़ी घूप में सखियों के संग, कैथा-आम औ’ इमली खाना,
सूखे पत्तों की सेज सजाकर, अमराइयों में सो जाना।


दबे-पाँव दुछत्ती में घुसकर, विविध-भारती पर गाने सुनना,
जिस   दिन पकड़ी जाती चोरी, आँसू बहा जंग जीत जाना।


कमरों में सिगड़ी जला जाड़ा भगाना, और बन्दे-मातरम्  गाना गाना,
बापू जवाहर की नकल उतार कर, नेता औ’ नेता बनने की कसमें खाना।


दादी का माँ पर हुकुम चलाना, दादा का उनकी हाँ में हाँ मिलाना,
बाबू जी के अनन करने पर, नहीं भूलता माँ का रोना...रोते जाना।


कुछ मीठी कुछ कड़वी यादें, नहीं भूलती बचपन की यादें।





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