नारी शक्ति
सागर से ज्यादा गहरा मन है,
फूलों से ज्यादा कोमल तन है.
हँस-हँस कर पीडा सह सकती है,
चुनौतियों से नहिं डरती है.
त्याग प्रेम की ईंट जोडकर,
घर की नींव सुदृढ़ बनाती,
अविश् वास-तानों की सेज को,
श्रृ द्धा के फूलों से सजाती.
कभी प्रेमिका राधिका जैसी,
तो कभी समर्पिता मीरा जैसी,
हर युग में इतिहास रचा है,
बन मैत्रेयी गार्गी या शबरी.
पीड़ित दुखी अभिशापित जन ने,
जब-जब इसे पुकारा,
सीने से इसके बहने लगती है,
ममता, दया, करुणा की धारा.
वसुंधरा सी क्षमाशील है,
पर कमजोर नहीं इक पल को,
दुर्गा बन जाती है नारी,
बदला लेने, पापाचार मिटाने को।
बाल-विवाह कर, बुर्का पहनाकर,
सती बना, बलात्कारी जोर जमाकर
मजबूर समझ, जुल्म किया सदियों तक ,
अब न सहेगी नारी, देख लो तुम आज़माकर।
संकल्प करें हम आज कि नारी हो न कभी बदनाम
जन-जन की वाणी से निकले “नारी शक्ति को प्रणाम”
“नारी शक्ति को प्रणाम” ...................
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