‘’मेरे गुरु’’
तिनके ने झुकना सिखलाया,
चींटी ने मेहनत करना.................
लेकर साथ चलो तुम सबको,
अविरल नदियों का कहना.........
सागर से भी सीखा मैंने,
शांत-गम्भीर बने रहना..............
मदमस्त पवन के झोंकों ने
सिखलाया, अल्हढ़ता से जीना..............
याद करूँ जब सागर-माथ को, (सागर माथ - हिमालय)
आ जाता अडिग अचल रहना........
दुर्गम मंजिल दुर्लभ लगती जब,
प्रेरित करता, धरती का सहना....................
कण-कण में मुझको दिखता है,
रूप मुझे मेरे गुरू का.................
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आज नमन करती हूँ, उन सबको,
शिक्षा जिनकी बनी गहना..............
(शिक्षक दिवस को मेरी हार्दिक श्रृद्धांजलि)
सुधा गोयल ’’नवीन‘‘
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