Tuesday 4 June 2019
विकलांग कौन?
विकलांगता पर बहस छिड़ी थी,
बड़ी मुश्किल घड़ी थी.....
अंग-दोष को विकलांग-दिव्यांग,
कहा जा रहा था .......
मन मेरा बेचैन मानने को तैयार न था,
एक दृश्य बार-बार परिभाषा बदलने
की गुहार लगा रहा था.......
जब उसकी अस्मिता लुट रही थी,
खून से तर, चुन्नी तार-तार हुई थी
चीखों से आसमान में छेद हुआ था,
दर्द का सैलाब तमाश बीनों को
डुबाने की कगार पर था,
तब ........
जिन आखों में हया न जन्मी,
जिन हाथों में कम्पन न हुआ,
जिन पैरों को लकवा मार गया,
जिनका दिमाग सुन्न भी न हुआ
क्या वही लोग सचमुच
विकलांग न थे.......
हाँ वही तो विकलांग थे.......
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