Thursday 30 March 2017

रवीन्द्रनाथ की कविता का अनुवाद

हाँ मेरा नाम मालती है। कोई भी नहीं जान पायेगा। बंगाल में ऎसी कितनी ही मालतियाँ हैं, और वे सभी साधारण लड़कियां हैं..... उन्हें फ्रेंच या जर्मन भाषा नहीं आती... उन्हें सिर्फ रोना आता है। तुम्हीं बताओ कैसे जिताओगे उन्हें... ? माना तुम्हारी सोच महान है, तुम्हारी लेखनी उदार भी, हो सकता है तुम उसे बलिदान के रास्ते पर ले चलो, शकुन्तला की तरह, दुःख की पराकाष्ठा तक। सुनो..... मुझ पर दया करो.... मेरे स्तर तक आओ। काली अंधियारी रात में, बिस्तर में छुपकर, मैं अनगिनत देवताओं से वरदान मांगती हूँ..... पर वे मुझे नहीं मिलते, लेकिन, हो सकता है, तुम्हारी नायिका उसे पा ले। क्यों नहीं तुम नरेश कों सात सालों के लिए लन्दन में रहने देते, अनेकानेक बार परीक्षाओं में असफल हो जाने देते, और रहने देते चापलूस-खुशामदीदों के साथ, इस बीच मालती को एम्.ए. की डिग्री मिल जाती, और वह तुम्हारे कलम के बल पर, गणित में, कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रथम उत्तीर्ण होती। लेकिन यदि तुम ऐसा करते तो...... तुम्हारी साहित्य-शिरोमणि वाली प्रसिद्धि, बुरी तरह प्रभावित होती........ रहने दो मेरी स्थिति जैसी है, वैसी ही..... अपनी कल्पना की उड़ान को प्रतिबंधित मत करो। आखिर तुम ईश्वर की तरह कंजूस भी नहीं हो। उस लड़की को योरप जाने दो, और ज्ञानी, विद्वान, दिलेर, बहादुर, कवियों, राजाओं, एवं कलाकारों के, झुण्ड को, उसके इर्द-गिर्द घूमने दो। खगोलशास्त्रियों की तरह....... खोजने दो, समझने दो....... केवल उसके पांडित्य या विद्या को नहीं, वरन एक औरत के वजूद को ....... जिसके पास दुनिया को जीतने की जादुई शक्ति है........ उस पहेली या रहस्य को उजागर होने दो, परन्तु बेवकूफों के देश में नहीं........ वरन वहाँ जहाँ कदरदान, पारखी और कला मर्मज्ञ हों। जैसे अँगरेज़, जर्मन या फ़्रांसीसी ....... अनेकानेक मिले सम्मानों के लिए क्यों न मालती का अभिनन्दन करें, और जुटाएं ढेरों प्रसिद्द हस्तियाँ। और सोचे कि प्रशंसाओं की अविराम बारिश हो रही है। [3/11, 14:34] Laksha's Southampton No: जब तक वह इन दोनों के बीच का रास्ता, बड़ी ही लापरवाही से तय करती है ---- जैसे उन्मत्त लहरों पर कोई कश्ती....... उन प्रशंसकों की फुसफुसाहटे उसकी आँखों पर टिकी हैं , सब कह रहे हैं कि उसकी सम्मोहित करने वाली आँखें, भारत के घने बादलों और प्रखर सूरज की चमक का मेल हैं। (जिस किसी से संबंधित हो, यहाँ मैं कहना चाहूंगी कि विधाता ने मुझे बेहद सुन्दर आँखें दी हैं। योरप के किसी सौन्दर्योपासक से मिलने का सौभाग्य नहीं मिला मुझे ...... इसलिए, स्वयं से कहती हूँ मैं कि विधाता ने बेहद सुदर आँखें दी हैं मुझे। नरेश को अद्वितीय सुन्दर औरतों के झुण्ड के साथ किसी कोने से अवतरित होने दो, और तब? तब मेरी कहानी अंत हो जायेगी, मेरे सपने दफ़न हो जायेंगे, आह! एक साधारण लड़की! ओह! उस सर्वशक्तिमान की शक्तियों का कितना दुखद अंत !!! आह! आह! (अनुवाद) सुधा गोयल 'नवीन'

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