Sunday 17 April 2016

शर्मनाक फैसला

शर्मनाक फैसला

फैसला हुआ,
रेपिस्ट को पति का दर्जा दे दो।
एक पत्थर से दो शिकार कर लो।
सिन्दूर और संतान,
एक साथ,
झोली में लपक लो,
बोलने वालों की बोली,
गंदे इशारे,
छुपी हँसी को,
लाल जोड़े की चकाचौंध से मूक कर दो।
कर लो बेटी ऐसा कर लो  …
बाबा की मूँछ तनी की तनी रह पायेगी,
माँ शर्म की तलैया में नहीं,
पैसों की नदी में नहाएगी,
बहन-भाई-नाते-रिश्तेदार,
सभी को कुछ न कुछ मिल ही जाएगा।
सच चाहे जो हो, पर……
इज्जत पर आँच न आएगी  ....
बेशर्मी की इंतहा ही तो है,
कहते हो कि उसे लाइसेंस दे दो,
कभी भी, कहीं भी, कुछ भी करने का।
शादी से पहले जो रेप है,
क्रूरता, निर्लज्जता, पशुता,
या वासना है,
क्या वही
शादी कर लेने भर से,
प्यार, समर्पण, विश्वास और
पूजा में तदबील हो जाएगा।
नहीं.... कभी नहीं....
यह तो ह्त्या है, नृशंस ह्त्या।
कोमल भावनाओं की,
पवित्र बंधन के मर्यादा की,
नारी अस्मिता की,
सम्पूर्ण अस्तित्व की।
आह! कैसे तुम्हें यह मंज़ूर है।
तुम इसे  बगावत कहो
या मेरी ढिढाई  ,
काँटों का ताज पहनने की ज़िद,
या अंधे कुएं में छलांग लगाने की
मंशा  ....
पर मुझे अस्वीकार है, अस्वीकार है, अस्वीकार है  ………………
आपका यह फैसला।।

सुधा गोयल “नवीन”

No comments:

Post a Comment